सोमवार, 15 अक्तूबर 2012














ये सोचकर रूह काप जाती हैं
जब पापा से बिछरने की बात आती हैं.....................

जिसने दिया था इतना लाड प्यार
एक दिन छोर जाउंगी उसी का साथ............................

जिसने बिठाया था कंधे पर खेल ही खेल में
आज विदा कर देंगे रिश्तो की रेल में....................

बचपन में चलना सिखाया था जिसने
रोती हुई गिडिया को हसाया था जिसने...............

छूता वो आंगन वो बचपन की घडिया
लौट कर न आयेंगी वो यादो की लडिया..........................

न सोचा था दूर जाउंगी कभी
मैं इतनी बड़ी हो जाउंगी कभि..................................

ज़िन्दगी के सफ़र में बढ़ जाउंगी मैं भी
उन्हें राहो  में तनहा छोर जाउंगी कभी.............................

शायद इसलिए वो यादे याद आती हैं
जब पापा से बिछरने की बात आती हैं

जब पापा से बिछरने की बात आती हैं ..............    











हमे लिखना न आता था,  उनकी यादो ने वो भी सिखा दिया
आँखों में नमी और हाथो में न आने का पैगाम थमा दिया

कहते हैं तुमने  कभी मोहब्बत नहीं किया हमसे
जाते जाते मुझे बेवफा का नाम करार दिया

यही सोचकर हम लिखते रहे वो आयेंगे
मेरी लिखावट को उन्होंने किसी और का नाम दिया

आये वो धूम धाम से दरवाजे पर बारात लेकर
और मुझे अपनी दुल्हन को सजाने का काम दिया