ये सोचकर रूह काप जाती हैं
जब पापा से बिछरने की बात आती हैं.....................
जिसने दिया था इतना लाड प्यार
एक दिन छोर जाउंगी उसी का साथ............................
जिसने बिठाया था कंधे पर खेल ही खेल में
आज विदा कर देंगे रिश्तो की रेल में....................
बचपन में चलना सिखाया था जिसने
रोती हुई गिडिया को हसाया था जिसने...............
छूता वो आंगन वो बचपन की घडिया
लौट कर न आयेंगी वो यादो की लडिया..........................
न सोचा था दूर जाउंगी कभी
मैं इतनी बड़ी हो जाउंगी कभि..................................
ज़िन्दगी के सफ़र में बढ़ जाउंगी मैं भी
उन्हें राहो में तनहा छोर जाउंगी कभी.............................
शायद इसलिए वो यादे याद आती हैं
जब पापा से बिछरने की बात आती हैं
जब पापा से बिछरने की बात आती हैं ..............