गुरुवार, 16 सितंबर 2010

!! माँ !!

!! मां !!

धूप  में एक ठंडी छाँव है माँ
समुद्र के गहरे तल में
सीप में छिपी मोती है माँ  .
मां प्यार की नगरी है /ममता की मूरत
स्नेह का आँचल है माँ  ...!

मां कोमलता का पर्याय है
मगर इरादों में-
चट्टानों सी मजबूत है माँ 
इसलिए कवच बनकर सुरक्षा देती है हमारी और-
करती है खतरों से आगाह
कभी दूर्गा  तो कभी
काली बनकर....!

फूलों से भी कोमल हो जाती है माँ 
उस वक़्त जब करती है बरसात स्नेह की
और पढ़ाती है ककहरा जीवन का ...
हर पल बसे होते हैं हम मां की साँसों में
और मां की सात्विकता बसी होती है हमारे आचरण में हर पल...!

मां श्रृष्टि की अनुपम रचना है
इसलिए तो पानी से भी ज्यादा शीतल है माँ
इतने गुण शायद भगवान में भी नहीं
इसलिए भगवान से भी बढाकर है माँ !

इतना कुछ होने के बावजूद -
हम क्यों नहीं समझ पाते माँ  की
ममता को /क्यों करते हैं उनका उपहास
क्यों नहीं करते उन सा स्नेह
क्यों छोड़ देते हैं हम उन्हें बीच मझधार में
जो करती है स्वार्थ रहित प्यार
जो स्वयं भूखो रहकर भरती  है हमारा पेट
और चोट खाकर खुद
मरहम लगाती है हमारे घावों को ....!

आज पूरी दुनिया के लिए-
एक सवाल है माँ !
पूछती हूँ मैं  आपसे कि क्या-
शर्मिन्दगी, लाचारी, बेवसी और नाममात्र  बनकर रह गयी है मां ?
() () ()

24 टिप्‍पणियां:

mala ने कहा…

बहुत सुन्दर

पूर्णिमा ने कहा…

hindi chitthaajagat men aapakaa swaagat hai

सुभाष नीरव ने कहा…

माँ पर एक अच्छी अभिव्यक्ति, सुन्दर प्रयास। इसे जारी रखों,मेरी ढ़ेर सारी शुभकामनाएं !

DR.ASHOK KUMAR ने कहा…

माँ के गौरव को गौरवान्वित करती भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायेँ। -: VISIT MY BLOG :- जिसको तुम अपना कहते हो...........कविता को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ। आप इस लिँक पर क्लिक कर सकती हैँ।

s k mishra ने कहा…

bhav poorn prastuti..bahut sundar

बेनामी ने कहा…

"मां श्रृष्टि की अनुपम रचना है
इसलिए तो पानी से भी ज्यादा शीतल है मां"

प्रशंसनीय प्रस्तुति - माँ के लिए जितना कहा जाये उतना कम है

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर| अति प्रशंसनीय प्रस्तुति|

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत भावपूर्ण!!

Coral ने कहा…

धुप में एक ठंडी छाँव है मां
समुद्र के गहरे तल में
सीप में छिपी मोती है मां . .....
----
ये है मेरी माँ.....
बहुत ही सुन्दर
___________
इसे भी पढ़े :- मजदूर

http://coralsapphire.blogspot.com/2010/09/blog-post_17.html

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

acchha prayaas hai.....thoda aur sochen,padhen,aur sune to aur bhi acchha likh paaayengi...

Amit K Sagar ने कहा…

बहुत-बहुत सुन्दर और उम्दा.
जारी रहें.
शुभकामनाएं.

अजय कुमार ने कहा…

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

संगीता पुरी ने कहा…

इस सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

रानीविशाल ने कहा…

सुन्दर भाव लिए बहुत ही सुन्दर रचना ....बधाई
यहाँ भी पधारे
विरक्ति पथ

खबरों की दुनियाँ ने कहा…

स्वागत ,सुन्दर अभिव्यक्ति । शुभ कामनाएं ।

M VERMA ने कहा…

भावपूर्ण ... सुन्दर रचना
माँ तो माँ है

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

प्रिय उर्विजा जी
नमस्कार !

बहुत कोमल भावनाओं की कविता रचने के लिए बधाई !
मां श्रृष्टि की अनुपम रचना है
निस्संदेह

आपके लिए मेरे एक गीत की कुछ पंक्तियां समर्पित हैं -

तेरा जीवन - चरित निहार' स्वर्ग से पुष्प बरसते हैं मां !
तुम- सा क़द - पद पाने को स्वयं भगवान तरसते हैं मां !
चरण कमल छू'कर मां ! तेरे , धन्य स्वयं होते भगवान !
धन्य तुम्हारा जीवन है मां ! स्वत्व मेरा तुम पर बलिदान !!


शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार

POOJA... ने कहा…

बहुत ही प्यारी रचना है,...

सहज समाधि आश्रम ने कहा…

सुन्दर शब्दों की बेहतरीन शैली ।
भावाव्यक्ति का अनूठा अन्दाज ।
बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
हिन्दी को ऐसे ही सृजन की उम्मीद ।
धन्यवाद....
satguru-satykikhoj.blogspot.com

केवल राम ने कहा…

बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति .....ममता को बहुत सार्थक शब्दों द्वारा अभिव्यक्त किया है आपने ....आपकी नयी पोस्ट का इन्तजार रहेगा ...शुक्रिया

Atul Shrivastava ने कहा…

बहुत ही प्‍यारी और संवेदनशील रचना। दुनिया में मां से बढकर कोई भी चीज नहीं होती। कहते हैं न कि ईश्‍वर ने पहले दुनिया बनाई और फिर इंसान बनाया। इसके बाद उसने मां को बनाया क्‍योंकि हर इंसान के पास वह खुद नहीं रह सकता था इसलिए मां बनाया।
उर्विजा जी आपको इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई। और एक गुजारिश की कि इतने अच्‍छे अल्‍फाज लिखने वाले को लंबे समय से ब्‍लाग की दुनिया से दूर रखना गलत है। आप लिखते रहें, अच्‍छा लिखें यही शुभकामनाएं।
प्रगतिशील लेखक संघ के ब्‍लाग में आने के बाद अचानक यहां आना हुआ और आपकी रचना को पढकर लगा कि आना सार्थक हो गया।

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

आप को सपरिवार होली की हार्दिक शुभ कामनाएं.

सादर

उर्विजा ने कहा…

achha laga sabhi tippariyo ko pad kar.

Darshan Lal Baweja ने कहा…

सुन्दर ...बहुत अच्छा....